Aatmakathy Kavita Mein Panktiyon Ke Murajhaakar Girane Se Kavi Ka Kya Taatpary Hai

‘आत्मकथ्य’ कविता में पंक्तियों के मुरझाकर गिरने से…

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‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि कहता है की मन रूपी भौंरा गुन-गुनाकर ऐसा कहानी सुना रहा है जिससे जीवन रूपी यात्रा की अनेक यादों के क्षण मुरझाई हूई पंक्तियों की तरह गिर रहे हैं। यहाँ कवि का तात्पर्य यह है की उसे ऐसी असंख्य घटनाएँ याद आ रही है जिनमें उसे वेदना ही मिली है। पंक्तियों के मुरझाकर गिरने को कवि ने दुखद स्मृतियों के प्रतीक के र्रोप में चित्रित किया है। एस कहकर कवि ने अपने जीवन के अधिकांश समय में पीड़ा भरी अनुभूति के ही मिलने का भावात्मक चित्रण किया है।